बहु-विषयक एवं
समग्र शिक्षा के माध्यम से ज्ञान का एकीकरण
प्रो. (डॉ.) गीर मोहम्मद इस्हाक़
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति (NEP-2020) के अन्तर्गत शिक्षार्थियों के चरित्र,
व्यक्तित्व,
बुद्धि,
काया,
सकारात्मक अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण के निर्माण और उन्हें बहुमुखी और सम्पूर्ण
व्यक्तियों में बदलने के लिए बहु- विषयक
एवं समग्र शिक्षा का
कार्यान्वयन किया जायेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति
(NEP-2020) देश में शिक्षा प्रदान करने के तरीके में एक आदर्श और क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास करती है। यह विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी आदि जैसे एकल शैक्षणिक संस्थानों सहित उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों में बहु-विषयक शिक्षा को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है। शिक्षा की सभी धाराओं को बहु-विषयक (multi-disciplinary) रूप में परिवर्तित करने का मुख्य उद्देश्य बहु-आयामी, सभी प्रकार के ज्ञान, कौशल, दक्षताओं और जीवन, लोगों, स्थानों, कलाओं, विज्ञानों, भाषाओं और प्रौद्योगिकियों के बारे में जानकारी से लैस व्यक्ति
अच्छी तरह से तैयार करना है। क्षमता निर्माण, क्षमताओं को बढ़ाने, दृष्टिकोण को आकार देने, योग्यता और दक्षता को बढ़ावा देने, प्रेरणा में सुधार के अलावा, चरित्र, व्यक्तित्व, बुद्धि, काया, सकारात्मक अंतर्दृष्टि और शिक्षार्थियों के दृष्टिकोण के निर्माण करने के लिए बहु-विषयक शिक्षा का
प्रदान किया जायेगा जिस से उन्हें तर्कसंगत, दयालु और देखभाल करने वाले नागरिक, बनाया
जायेगा एंव उन्हें एक समृद्ध विरासत को पीछे छोड़ने और समाज को एक सकारात्मक रूप में वापस योगदान करने में सक्षम बनाया
जायेगा।
शिक्षा को ऐसे हरफनमौला तैयार
करनें चाहिए जो जीवन के हर क्षेत्र में विजेता की तरह सेवा करें। यही
बहु-विषयक और समग्र शिक्षा का उद्देश्य है जिसको नेप-२०२० के नए युग में कार्यान्वित किया जाएगा।
बहु-विषयक और समग्र शिक्षा का उद्देश्य एकीकृत तरीके से बौद्धिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक, पारस्परिक, मानवतावादी और नैतिकता सहित मानव की विविध क्षमताओं का विकास करना है। इस प्रकार की शिक्षा बहुमुखी और सर्वगुण
सम्पूर्ण व्यक्तियों को विकसित करने में मदद करेगी, जो कला, भाषा, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, पेशेवर, तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रों सहित विभिन्न धाराओं में इक्कीसवीं सदी के कौशल और क्षमताओं से सुसज्जित हैं। बहु-विषयक
शिक्षा
का उद्देश्य सामाजिक
समन्वय एवं सामंजस्य की पदोन्नति करना और ऐसे व्यक्तियों
को विकसित करना है जिनके पास संचार कौशल, कार्य और जीवन कौशल, संख्यात्मक साक्षरता, भाषा और आईटी प्रवीणता (डिजिटल साक्षरता), चर्चा और बहस करने की क्षमता, गंभीर विश्लेषण करने की क्षमता, सही दिशा में सोचने के लिए अभिविन्यास जैसे मूलभूत कौशल हों
और जिनमें अध्ययन के अपने चुने हुए क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने के अलावा, रचनात्मक और नवप्रवर्तन
की पर्याप्त क्षमता मौजूद हो। इस प्रकार की बहु-विषयक और समग्र शिक्षा को समयबद्ध
तरीके से
सभी स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में अपनाया जाएगा, जिनमें पेशेवर, तकनीकी और व्यावसायिक विषय भी शामिल हैं। कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि किसी व्यक्ति के लिए प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञ होना व्यावहारिक रूप से कैसे संभव है, उनका
मानना हैं कि ऐसा करने से कई विषयों का ओवरलैप हो सकता है जिससे किसी प्रकार की
अराजकता
हो सकती है। यहां यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि अनिवार्य रूप से कौशल अधिग्रहण के पांच चरण होते हैं जैसे कि नौसिखयापन, उन्नत शुरुआत, सक्षमता, कुशलता और विशेषज्ञता। बहुविषयक और समग्र शिक्षा सभी को हर चीज में विशेषज्ञ बनाने की परिकल्पना नहीं करती है बल्कि इसका उद्देश्य शिक्षार्थियों को हर चीज के बारे में
सब कुछ,
कुछ के बारे में कई चीजें और एक चीज के बारे में सब कुछ समझना और जानना है। यह उन्हें कई क्षेत्रों में जानकार और सक्षम बनाने की परिकल्पना करती
है, लेकिन उन्हें विशेषज्ञता केवल
एक
चुने हुए क्षेत्रों में ही मिल पायेगी।
छात्रों
को
अनुसंधान के साथ स्नातकोत्तर कार्यक्रमसे में एक प्रमुख और दो छोटे विषयों का चयन करने
के बाद
स्नातक स्तर पर ऑनर्स या शोध के साथ एक या दो साल का चयन करना
होगा। इस
प्रकार की बहु-विषयक शिक्षा शिक्षार्थियों को आजीवन, निरंतर आत्म-जागरूकता, आत्म-खोज और आत्म-बोध की एक सतत प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ाएगी।
दुनिया में मौजूद कई सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, जनसांख्यिकीय, पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और भौगोलिक समस्याओं के लिए बहु-विषयक
दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
वर्ष २०२० की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) के अनुसार कला और विज्ञान के बीच, पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच कोई बोझिल
अलगाव
या विभाजन नहीं होना चाहिए। विषयों के बीच व्यर्थ पदानुक्रम को खत्म करने और सीखने के विभिन्न क्षेत्रों के बीच कक्षों को खत्म करने के लिए, NEP-2020
प्रत्येक
विध्यार्थी की अनूठी क्षमताओं को विधिवत रूप से पहचानने और पोषण करने के अलावा ज्ञान की एकता और अखंडता को बढ़ावा देने के व्यापक उद्देश्य के साथ साथ बहु-विषयक और समग्र शिक्षा को बढ़ावा देती है।
यह
नीति शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों में प्रत्येक छात्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों के साथ-साथ माता-पिता को भी संवेदनशील बनाने
पर ध्यान केंद्रित करती है। इस नीति के अनुसार वर्ष 2040 तक, सभी उच्च शिक्षा संस्थानों
को
बहु-विषयक संस्थान बनाने का प्रयास किया
जाएगा,
जिनमें से प्रत्येक में 3000 या अधिक छात्र होंगे। वर्ष 2030 तक देश के हर जिले में कम से कम एक बड़े बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) होंगे
और
वर्ष 2035 तक IIT,
IIM, NIT सहित सभी स्टैंडअलोन शैक्षणिक संस्थानों को बहु-विषयक शैक्षणिक संस्थानों में परिवर्तित करने का प्रयास किया
जायेगा।
NEP-2020 दस्तावेज़ के अनुसार “बहु-विषयक शिक्षा का एक और उद्देश्य भारत में गहरी जड़ें और गर्व की भावना पैदा करना होगा। इसकी समृद्ध संस्कृति, लोकाचार, परंपराओं, विविधता और विज्ञान, गणित, साहित्य और ज्ञान की दुनिया में योगदान की समझ बढ़ाना और सराहना
करना है।
यह व्यक्तिगत उपलब्धि और ज्ञान, रचनात्मक सार्वजनिक जुड़ाव और समाज में उत्पादक योगदान के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देगी।”
बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कदम रखते हुए हमें उन परिसीमाओं
को ध्वस्त करने की जरूरत है जिनमें शिक्षाविद अब तक कार्य
करते आरहे हैं और उन कक्षों को भंग कर देना चाहिए जिनमें ज्ञान सीमित हुवा है। ज्ञान एक सागर है जिसकी कोई सीमा नहीं है और इसलिए इसे कक्षों में सीमित नहीं किया जा सकता है। अपने विषय और अनुशासन-विशिष्ट साम्राज्यों से ऊपर उठकर, शिक्षाविदों को एकीकृत, सहयोगी, अंतर-अनुशासनात्मक अनुसंधान से
जुड़े समस्याओं को साथ मिलकर समग्र समाधान तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि एक साथ सामना की जा रही इन समस्याओं के कई आयामों को संबोधित किया जा सके
और उन्हें हल करके इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाया
जिसके।
एक
धारणा यह भी है कि संकीर्ण अनुशासक, जो जीवन भर ज्ञान के केवल एक विषय (discipline)
का अध्ययन
करते
हैं, वही अक्सर ऐसी गलतियाँ करते हैं जिन्हें दो या दो से अधिक विषयों से परिचित लोगों द्वारा सबसे अच्छी
तरह से चिन्हित किया जासकता है। इसलिए,
"ज्ञान की समग्रता और एकीकृता या "अनुशासनात्मकहीनता
(undisciplinarianism)" समय की आवश्यकता है और इस विषय पर मंथन करना
NEP-2020
का
एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। यहां तक कि वेदों और अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों, हदीसों, पवित्र कुरान के छंदों
में
ज्ञान की एकता और अखंडता का प्रचार किया
गया
हैं और हमें प्रकृति को समग्र रूप से अन्वेषण
करने और
सभी प्रकार के ज्ञान की तलाश करने के लिए प्रेरित करते हैं।
सहयोगी विभागों के बीच प्रभाव संतुलन, संचार का
स्तर और
आंतरिक
संपर्क
के आधार पर बहु-विषयकता के कई स्तर और रूप होते हैं जिनमें ट्रांस(trans)-डिसिप्लिनरी, अंतर(inter)-डिसिप्लिनरी, क्रॉस(cross)-डिसिप्लिनरी, प्लुरि (Pluri)-
डिसिप्लिनरी और बहु(multi)-डिसिप्लिनरी शिक्षा शामिल हैं। यह केवल विविध धाराओं का मेल नहीं होना चाहिए बल्कि एक प्रभावी, सार्थक, उत्पादक और उपयोगी एकीकरण होना चाहिए जो लक्ष्यों की सहक्रियात्मक सिद्धि के लिए अग्रणी हो। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से 'ट्रांसडिसिप्लिनारिटी' 'मल्टीडिसिप्लिनारिटी' की तुलना में उपयोग करने के लिए एक बेहतर शब्द है, हालांकि कमोबेश दोनों का तात्पर्य एक ही है। वे कॉलेज जिनके पास वर्तमान में विविध धाराओं से संबंधित विभिन शिक्षण संकाय और विभाग हैं तेजी से विकसित हो सकते हैं और बहु-
विशयिक
शैक्षणिक
संस्थानों के रूप में उभर सकते हैं, जबकि कम विभाग वाले और विषयों में कम विविधता वाले कॉलेज क्लस्टर बना सकते हैं और छात्रों को बहु-विषयक शिक्षा प्रदान करने के लिए सहयोग कर सकते हैं, बशर्ते उनकी भौगोलिक स्थिति, स्थान और एक दूसरे से दूरी विचार विमर्श के पक्ष में हो। ऐसे महाविद्यालयों के दूरस्थ स्थानों की स्थिति में, अनुसूचियां और समय सारिणी इस तरह से तैयार की जा सकती हैं कि विभिन्न कॉलेजों से बारी-बारी से सीखने में सहायता मिलती हो, ऐसी स्तिथि में एक निश्चित समय में एक स्थान पर एक विषय को पूरा करना और फिर अगला संस्थान
पर शिफ्ट करना विचाराधीन रखना चाहिए। कहते हैं 'जहाँ चाह है वहाँ राह है'। इसके कार्यान्वयन में आने वाली हर बाधा को दूर किया जा सकता है बशर्ते हमारे पास ऐसा करने की इच्छा शक्ति, दृढ़संकल्प और प्रेरणा हो।
वर्तमान में हम नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन चरण में हैं और इसकी आलोचना का समय समाप्त हो गया है। इस स्तर पर चर्चा की गुंजाइश केवल उन तरीकों और साधनों के संबंध में है जिनके द्वारा हम नीति को सकल रूप से लागू कर सकते हैं। नीति कार्यान्वयन के वैचारिक ढांचे के अनुसार इसके
कार्यान्वयन के दौरान उभरने वाली किसी भी विसंगतियों,
कमियों
या समस्याओं का नीति समीक्षा,
निरंतर निगरानी और संशोधन के अंतिम चरण के दौरान समाधान किया जा सकता है। इसलिए वर्तमान में हम सभी को अपनी सामूहिक बुद्धिमता और नीति को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने की आवश्यकता है। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने परिवर्तन के क्षेत्रों की पहचान करने, उन्हें प्राथमिकता देने, उनकी जरूरतों और बाधाओं का आकलन करने और अच्छी तरह से परिभाषित लघु, मध्य और दीर्घकालिक लक्ष्यों के माध्यम से अपनी नीति कार्यान्वयन की रणनीति बनाने के लिए अपनी संस्थागत विकास योजनाएं (आईडीपी) तैयार करने की आवश्यकता है। उन्हें अपने लक्ष्य निर्धारित करने, स्वयं के लक्ष्य संकेतक और मील के पत्थर सुन्योजित
करने और
उनकी समयबद्ध तरीके से उपलब्धि के लिए समय सीमा तय करने और नीति के कार्यान्वयन के लिए अपने स्टाफ सदस्यों को भूमिकाएं और जिम्मेदारियां सौंपने की आवश्यकता है। इस नीति को लागू करने में अपनी ताकत, कमजोरियों अवसरों और चुनौतियों से अवगत होने के लिए प्रत्येक संस्थान को अपना एसडब्ल्यूओसी
विश्लेषण
(SWOC Analysis) करने की आवश्यकता है। नीति के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ने के लिए उन्हें संबंधित विभागों और अधिकारियों के समक्ष बुनियादी ढांचे, जनशक्ति, वित्त पोषण, वैधानिक अनुमोदन आदि के साथ अपनी आवश्यकताओं को प्रस्तुत करने की ज़रूरत
है।
हालांकि इस समय यह थोड़ा मुश्किल लग सकता है, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर हम निश्चित रूप से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर
सकते हैं ।
(यह लेख 27 जून 2022 को गवर्नमेंट कॉलेज फॉर विमेन, एम ए रोड, श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित "एनईपी -2020: तैयारी और कार्यान्वयन" पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान लेखक द्वारा दिए गए एक भाषण के अंशों पर आधारित है - लेखक फार्मास्युटिकल साइंसेज विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं)